
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर बनी फिल्म “अजेय: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ अ योगी” का रास्ता अब अदालत से होकर गुजर रहा है। 1 अगस्त को रिलीज़ के लिए तैयार इस फिल्म को अब तक सेंसर बोर्ड की हरी झंडी नहीं मिली है, जिसके चलते फिल्म निर्माता बॉम्बे हाई कोर्ट पहुंच गए हैं।
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सेंसर बोर्ड बोले – “2 दिन और दीजिए, निर्णय देंगे”
सुनवाई के दौरान सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (CBFC) ने कोर्ट को बताया कि फिल्म पर अगले 48 घंटे में फैसला लिया जाएगा।
कोर्ट ने भी तर्कपूर्ण रुख अपनाते हुए कहा,
“हर फिल्म को स्वतंत्र रूप से जांचा जाता है, लेकिन प्रक्रिया में देरी न हो।”
फिल्म ‘अजेय’ में क्या है खास?
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योगी आदित्यनाथ के जीवन पर आधारित यह बायोपिक उनके संत से सीएम बनने तक की कहानी कहती है।
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फिल्म के ट्रेलर में गोरखनाथ मंदिर, छात्र जीवन, राजनीतिक संघर्ष, और विपक्षी हमलों को दिखाया गया है।
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मेकर्स का दावा है कि यह “राजनीतिक नहीं, प्रेरणात्मक फिल्म है।”
“बाबा अजेय, पर फिल्म नहीं?”
जहां योगी जी “अजेय” हैं, वहीं उनकी फिल्म सेंसर बोर्ड से ‘अप्रूवेबल’ नहीं! अब देखना ये है कि CBFC फिल्म देखेगा या सिर्फ राजनीति की स्क्रिप्ट?
क्यों है रिलीज़ पर सस्पेंस?
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1 अगस्त को फिल्म रिलीज़ होनी है, लेकिन अभी तक सेंसर प्रमाणपत्र नहीं मिला।
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बॉम्बे हाई कोर्ट में फास्ट ट्रैक सुनवाई चल रही है।
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फिल्म में संवेदनशील विषयों और राजनीतिक किरदारों के कारण CBFC अतिरिक्त सतर्कता बरत रहा है।
मेकर्स की दलील:
“हमने सभी नियमों का पालन किया है। फिल्म में कोई विवादास्पद दृश्य नहीं है। यह सिर्फ एक प्रेरणात्मक यात्रा है, जो देश के एक बड़े नेता को श्रद्धांजलि देती है।”
क्या कहता है कानून?
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सर्टिफिकेट के बिना फिल्म रिलीज़ नहीं हो सकती।
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कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद अब सेंसर बोर्ड के पास सीमित समय है।
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अगर अनुमति नहीं मिली, तो मेकर्स फिल्म रिलीज़ टाल सकते हैं या ओटीटी की राह पकड़ सकते हैं।
“बायोपिक तैयार है, बस ‘कट’ की गूँज बाकी है!”
सवाल ये है – क्या योगी जी की फिल्म को भी वही इंतज़ार करना होगा, जो आम जनता को सरकारी दफ्तरों में होता है?